Thursday, December 31, 2020

अलविदा 2020

अगस्त के महिने के
तीसरे गुरुवार की दोपहर
मूसलाधार बारिश में भीगता हुआ
वो मेरी दहलीज पर आया था ।
मुझसे विदा लेने ...
फिर आने का वादा करके।
इंतजार करना 
मैं लौटकर आऊंगा
दिसम्बर के अंतिम सप्ताह।

मैं,वो,मेरी धड़कन और बारिश
गवाह है हमारी अंतिम मुलाकात की ...
उसके वादें की.....
सदी के सोलहवें वर्ष, 
अगस्त के तीसरे गुरुवार की दोपहर ...
किया जो वादा उसने, मुझसे
 दिसम्बर के अंत में लौट आने का,
तब से इंतजार जारी है मेरा,
दिसम्बर के अंतिम सप्ताह का।

आज फिर उसका वादा झूठा निकला ।
मैं खड़ी हूं,
घर की छत पर,
इक्कीसवीं सदी के बीसवें वर्ष की
अंतिम संध्या को...
डूबता सूरज देख रही हूं
दिसम्बर की अंतिम तारीख का 

सूरज के साथ ही डूब रहा मेरा इंतजार
जो शुरू हुआ था
सदी के सोलहवें वर्ष की 
अगस्त के तीसरे गुरुवार को
जो चलता रहा 
सदी के बीसवें वर्ष के
दिसम्बर के अंतिम गुरुवार तक ।



प्रियंका चौधरी 
31दिसम्बर 2020

Wednesday, December 23, 2020

लम्बी रात

इक्कीस दिसम्बर की रात 
साल की सबसे बड़ी 
रात है,
ये भूगोल कहता है ।
इश्क की रातें ,
तुम्हारी इक्कीस की,
रात  से कहीं बड़ी होती है ।
भूगोल कह रहा है
आज 
दस घण्टे अठारह मिनट का दिन 
तेरह घण्टे बयालीस मिनट की रात होगी ।
आज साल की सबसे बड़ी रात होगी ।
शिशिर ऋतु के स्वागत के साथ 
सूर्य उत्तरायण होगा ।
तुम्हारे
भूगोल‌ से अलग,
इश्क का भूगोल‌ है।
जहां सूर्य उत्तरायण ,
दक्षिणायन से दूर ।
टिका होता है इंतजार पर ।

जहां रातें हमेशा लम्बी ,
दिन के उजाले में ‌
सूर्य ,चन्द्रमा लगता है ‌।

इश्क में डूबा आशिक 
सूर्य को मानकर चन्द्रमा
देखता है महबूब का चेहरा ।
इश्क का भूगोल
तुम्हारे भूगोल से अलग होता  है।

प्रियंका_चौधरी
21/12/2020

Friday, December 11, 2020

भाषा

मुझे आती है
सिर्फ 
इश्क और इंकलाब की भाषा ।
तुम मुझसे
इश्क में बात करो 
या 
इंकलाब में ।
मुझे नहीं आती 
नफरत के ढे़र पर बैठकर 
जाति, धर्म की बातें करना ।
मुझे आती है 
इश्क या इंकलाब की भाषा ।

प्रियंका चौधरी

11/12/2020

Tuesday, September 29, 2020

बेटी

बेटी - कविता
स्वर्ण या दलित नहीं होती,
बेटी 
गरीब या अमीर नहीं होती।

स्वर्ण और दलित
अमीर और गरीब 
आदमी की सोच होती है 
जिससे इस समाज का निर्माण हुआ है।
बेटी का कोई जाति, धर्म नहीं होता।
Pic by Google
प्यार और प्रेम के लिए,
जो छोड़ आती है अपने जन्म का घर,
जाति, धर्म और अपने नाम के साथ।
जो अब तक उसकी पहचान थी।

ना बेटी कमजोर है 
ना ही अबला 
कमजोर तो है 
समाज की सोच 
जो बेटी की ताकत को 
ना तो समझ पाई 
और ना ही 
पचा पाई।

अन्याय का शिकार होती आई है,
फिर भी मर्दों को जन्म देती आई है
घृणा है मुझे 
 समाज के हर उस कीड़े से 
समाज की उस मानसिकता से 
जो स्त्री को सिर्फ 
वासना समझकर इस्तेमाल करता है।

- प्रियंका बैनीवाल

30/09/2020

Wednesday, September 16, 2020

न्यायपालिका और हिंदी

मानव इतिहास की सबसे बड़ी खोज भाषा है ।भाषा ही एक ऐसा साधन है ,जो इंसान और जानवर में अंतर पैदा करता है ।भाषा ही एक ऐसा आधार है जिसके आधार पर हम कह सकते हैं कि हम मनुष्य हैं ।मानव की प्रगति में भाषा का अहम योगदान रहा है।

भाषा के इतिहास पर  नजर डालें तो भाषा का इतिहास बहुत लम्बा -चौडा है ,जो अनेक युद्ध, क्रांतियों ,रीति-रिवाजों से गुजरता हुआ आज बीसवीं सदी के बीसवें वर्ष की दहलीज पर खड़ा है ।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है ।समय -समय पर अनेक भाषाओं का अविष्कार हुआ ,अनेक भाषा विलुप्त भी हुई कुछ भाषाओं का स्वरुप बदला ।
एक शोध के अनुसार , विश्व में लगभग कुल 6809 भाषाएं हैं  ।
भाषा ही वो माध्यम है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने आप को अभिव्यक्त कर सकता है ।भाषा के माध्यम से ही व्यक्ति समाज में जुड़ा रहता है । प्यार के गीत,विरह की वेदना ,पिता की डांट, मां की ममता को हम भाषा के माध्यम से ही अभिव्यक्त कर सकते हैं ।
भारत के संविधान ने भी हर इंसान को बोलने का अधिकार दिया हैं ।भारत के संविधान का अनुच्छेद 19(के)वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में हैं ।

हिंदी भाषा और हम ----

हिंदी हमारी मातृभाषा हैं , हिन्दी से हमारा खून का रिश्ता है। हिंदी को 14सितम्बर 1949को हमारी राजभाषा घोषित कर दिया गया था ‌और संविधान के अनुच्छेद 343से 351तक में राजभाषा के सम्बन्ध में व्यवस्था कर दी गई ।
विडम्बना की बात है कि आजादी के 74वर्ष बाद भी आज हमारी मातृभाषा हिंदी ने राष्ट्र भाषा का पद नहीं लिया । वर्तमान आंकड़ों के अनुसार ,एक अरब 36करोड आबादी वाले हिंदूस्थान की मातृभाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में मान्यता नहीं मिली ।
अपनी भाषा के वगैरह राष्ट्र गुगां होता है वो ही हालात वर्तमान में भारत के साथ हो रही है । विश्व की तीसरी सबसे बड़ी बोली जाने वाली हिंदी भाषा के साथ ,अपने ही घर में सौतेला व्यवहार किया जा रहा है । हिंदी एक समृद्ध भाषा होते हुए भी उसको राजभाषा का दर्जा देकर आज हम अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं ।हम संकीर्ण मानसिकता का शिकार होकर हिंदी को नजरंदाज करके अग्रेजी भाषा में अपना करीयर बनाने की तरफ दौड़ रहे हैं ।ये हम युवाओं की एक अंधी दौड़ है जो किसी रोज़ हमें गर्त में धकेल देगी ।
इस हिंदी दिवस के मौके पर हमें इस सवाल का जवाब तलाशना होगा ...
हम देशवासियों के सामने एक महत्वपूर्ण प्रश्न ये है कि आज हमारे पास हमारी समृद्ध भाषा होते हुए भी हम अंग्रेजी के पिछे क्यों दौड़ रहे  हैं?

हिंदी विश्व की सबसे तीसरी बड़ी भाषा है जिसको , विश्व के सतर करोड़ लोग बोलते हैं जो अंग्रेजी (112अरब )और चीन की मैड्रेन (111.7करोड) के बाद भाषाओं की श्रेणी में अपना तीसरा स्थान रखती है ।



#न्यायपालिका_और_हिंदी_भाषा-------

किसी लोकतांत्रिक देश में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका महत्वपूर्ण स्तम्भ है । लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए तीनों अंगों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। लोकतंत्र को मजबूत और उसकी नींव को मजबूत बनाने में न्यायपालिका का विशेष स्थान होता है ।
किसी देश की न्यायपालिका जागरूक है तो उस देश का नागरिक भी जागरूक और कर्त्तव्यनिष्ठ होता है । इंसान के जन्म के साथ ही उस पर उस देश के अधिकार और कर्त्तव्य लागू हो जाते हैं ।मानव की प्रवृत्ति रही है कि वो अधिकार की मांग तो करता है पर‌ कर्त्तव्य का पालन करने में आनाकानी करता है । मानव समुदाय को अधिकार और कर्तव्य के प्रति जागरूक करने में न्यायपालिका का अहम योगदान होता है ।

किसी देश या राष्ट्र का कानून बनाने में और उसको लागू करने में उस देश की भाषा का महत्वपूर्ण  स्थान होता है ।अगर हम किसी देश के कानून को किसी अन्य देशकी भाषा में बना दे तो वो कानून उस देश के लिए नाकारा साबित होगा ।
विडंबना की बात है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का कानून उनकी खुद की भाषा हिन्दी में नहीं बल्कि अंग्रेजी में हैं ।
मैं यहां भारत के संविधान के किसी अनुच्छेद या अध्याय की बात नहीं करूंगी जो भाषाओं के सम्बन्ध में बने है और ना ही किसी संविधान संशोधन द्वारा जोड़े गये कानून का जिक्र करूंगी।मैं बस यहां बात करूंगी भारत की न्यायपालिका पर अंग्रेजी का अधिपत्य होने से आमजन को होने वाली परेशानी के बारे में।

भारत की न्यायपालिका ,अंग्रेजी भाषा पर आधारित है ।इस वजह से हमेशा , हमारे समाज को निष्पक्ष न्याय प्राप्त करने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
किसी देश को अपना  कानून ,अपने देश की भाषा में सरल और स्पष्ट रूप में बनाने चाहिए जिसको आमजन अच्छी तरह से समझ लें पर विडम्बना की बात है कि हमारे देश के लगभग कानून अंग्रेजी भाषा में बनते हैं ,भाषा की वजह से आमजन को कानून की बारिकियों को समझने में बहुत सारी अड़चनों का सामना करना पड़ता है ‌।इस लिए किसी देश  के प्रत्येक नागरिक को निष्पक्ष न्याय सुलभ कराने के लिए अपनी भाषा का होना अनिवार्य है ।
राष्ट्रपति महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि 'यह क्या कम ज़ुल्म की बात है की मुझे अपने ही देश में अगर इंसाफ पाना है तो मुझे अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करना पड़ता है ' 
उन्होंने कहा कि मैं बैरिस्टर होने पर भी मैं अपनी भाषा नहीं बोल सकता तो दूसरे आदमी को मेरे लिए तर्जुमा कर देना चाहिए ।यह कुछ दंभ हैं?यह गुलामी की हद नहीं तो और क्या है?इसमें मैं अंग्रेजी का दोष निकालूं या अपना ? हिंदुस्तान को गुलाम बनाने वाले तो हम अंग्रेजी जानने‌वाले लोग हैं ।
हमारे देश में हर रोज नियम लागू होते हैं कि उच्चतम न्यायालय अपने फैसले हिंदी में देगा, न्यायपालिका अपनी सुनवाई हिंदी में करेगी पर हकीकत में ऐसा नहीं होता ये नियम सिर्फ कागजों में लागू होते हैं ।
अब मैं बात करूंगी कानून की पढ़ाई की …..
हमारे देश में कानून की पढ़ाई बहुत ही खर्चीली और अंग्रेजी भाषा में है । कुछ विश्व विद्यालय और महाविद्यालय अब हिंदी भाषा में भी कानून की पढ़ाई करवाने लगे हैं पर उनके प्रति विद्यार्थी वर्ग का रूझान कम है क्योंकी हिंदी में ना तो अच्छे शिक्षक है और ना ही हिंदी भाषा में कानून की किताबें इस कारण अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी भाषा से कानून की शिक्षा करने पर बल दे रहे हैं ।
जो बच्चें अंग्रेजी भाषा में कानून की पढ़ाई कर रहे हैं जब वो वकालत या न्याय के मैदान में सेवा करने के लिए आयेगे तो उन्हें सिर्फ अंग्रेजी भाषा का ही ज्ञान होगा जो आमजन के लिए सबसे बड़ी समस्या बनेगा ।
सामान्य जनता हिंदी भाषी होगी और न्यायपालिका के लोग अंग्रेजी भाषा को जानने समझने वाले होंगे तो न्यायपालिका निष्पक्ष न्याय नहीं कर पायेगी क्योंकि उनके मध्य भाषा की दूरी होगी ।भाषा की दूरी की वजह से न्याय में अवरूद्ध पैदा होगा जो लोकतंत्र के प्रत्येक नागरिक के लिए चिंताजनक है ।इस लिए भाषाई दूरी को मिटाने के लिए कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को मिलकर इस तरफ ध्यान देना चाहिए और जितना जल्दी हो सके इसका सामाधान करना चाहिए ।


जय हिन्द जय भारत 


प्रियंका चौधरी परलीका

राजभाषा परिवार की तरफ से जारी ई बुक में आलेख 

Monday, September 14, 2020

हिंदी दिवस

हिन्दी दिवस

दुनिया की भीड़ में 
दूर से
मां के ललाट पर
चमकती बिंदी देखकर 
हजारों में, मैं अपनी मां को
पहचान लेती हूं ।
ठीक उसी तरह 
भाषाओं के प्रांगण में
शब्दों के जाल में
चन्द्र बिन्दु से शोभित 
शब्दों को देखते ही 
पहचान लेती हूं 
ये मां , हिन्दी के बच्चे हैं ।
जिनसे मेरा खून का रिश्ता हैं।।

प्रियंका चौधरी

Wednesday, September 9, 2020

विश्व आत्महत्या निरोध दिवस 10सितम्बर 2020

इन दिनों स्कूली परीक्षाओं के परिणाम जारी हुए हैं । प्रतिस्पर्धा के दौर में विद्यार्थियों ने शत प्रतिशत तक अंक प्राप्त किये है ।विज्ञापन के इस दौर में हर तरफ सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों के पोस्टर से ,शहर की सड़कें ,दिवारे ,बस स्टैंड आदि भरे पड़े हैं ।हमने किसी वस्तु विशेष। का प्रचार तो सुना था पर अब तो विद्यार्थियों के अंकों का प्रचार करके विद्यार्थी वर्ग का मानसिक और आर्थिक शोषण हो रहा है ।आज के समय की सबसे बड़ी विडंबना ये है कि हमें हर चीज टॉप चाहे ,चाहे वो हमारे कपड़े हो , जूते हो चाहे गाड़ी।इस आधुनिकता वो फैशन की इस चमक में हमें हमारे बच्चों का रिजल्ट भी टॉप चाहिए ।हमारी सबसे बड़ी भूल ये होती है कि जो सपने हमने देखे थे और पूरे नहीं हुए उन सपनों को अपने बच्चों पर थोप देते हैं और उनके मजबूर करते हैं ,अपने सपने पूरा करने की ।हमारी ये भूल ही बच्चों में तनाव, चिड़चिड़ापन पैदा करती है ।हम ये भूल जाते हैं कि हर इंसान का सपना अलग अलग होता है ।हम बच्चे थे तब सपने देखते थे वो सपने अपने थे तो अपने बच्चों को सपना देखने से क्यों रोक रहे हैं ।हमारी इसी भूल के कारण हम कई बार अपने बच्चों को खो भी देते हैं । हर रोज खबरों में सुनने को मिलता है कि परीक्षा परिणाम से निराश होकर बच्चे ने की आत्महत्या । आत्महत्या के बढ़ते इस ग्राफ से  समाज को बहुत बड़ा खतरा है । अभिभावकों को इस बात को समझना चाहिए कि हर इंसान के दिमाग का आईक्यू लेवल अलग अलग होता है और हर इंसान को प्रकृति ने अलग अलग हुनर दिये है ।कोई अच्छा खिलाडी है तो कोई अच्छा डाक्टर ,कोई अच्छा कलाकार है तो कोई अच्छा शिक्षक ।इस लिए हमें हमारे बच्चों की काबिलियत को पहचाना होगा ।

वर्तमान दौर की इस विकट परिस्थिति में लिखी मेरी कविता हर उस लड़के को समर्पित है जो परीक्षा परिणाम में असफल हुआ है या कम अंक के साथ उत्तीर्ण हुआ है ।



जिन्दगी के 
पथरीले रास्तों में
नहीं आयेगी ।
तुम्हारे काम
किताबों को पढ़कर 
हासिल की गई
शत प्रतिशत अंकों की डिग्री।

उस समय 
तुम्हारे काम आयेगा
पथरीले रास्तों में चलने का
तुम्हारा अनुभव
तुम्हारा हुनर
तुम्हारी ताकत
इसलिए,
महज कागज के टुकड़े से
निराश होकर
तुम मत त्याग देना
अपना जीवन
जो खड़ा इंतजार कर रहा है।
सुनहरे भविष्य की दहलीज पर।

कागज के टुकड़े से
निराश होकर
तुम भूल मत जाना
अपना हुनर
जो तुम्हें 
दिया है प्रकृति ने
तौहफे में
कुछ नया 
करने के लिए 

ये कागज का टुकड़ा 
जिसको देखकर 
तुम परेशान हो
निराश हो
ये कागज का टुकड़ा 
सिर्फ कागजी परीक्षा का परिणाम है 

तुम्हें उत्तीर्ण करनी है 
जीवन की असली परीक्षा 
जो किसी कागजी डिग्री की मोहताज नहीं 
इसके लिए 
तुम्हें तुम्हारे
हुनर को 
पहचानना होगा
निकलना होगा 
मंजिल की तलाश में
सफर पर 
अभी से 
आज से ।





Saturday, September 5, 2020

शिक्षक

लोकतंत्र में भी 
खामोश है हम 
पुछने से डरते हैं 
सवाल
हिम्मत नहीं जुटा पाते 
सवाल करने की 
बचपन में 
शिक्षक ने झिड़क दिया था 
सवाल पुछने पर 
तभी से लगता है डर 
कहीं सवाल करने पर‌
उत्तर के बदले
डांट /सजा ना मिल जाये ।
भविष्य निर्माता ,
शिक्षकों ...
मेरा अनुरोध है आपसे 
आप बच्चों को ,
सवाल करना सिखाना
वो उत्तर खुद ढूंढ लायेंगे ।
जब भी हालात पैदा होगी 
सरकार, न्यायपालिका, कार्यपालिका से 
सवाल करने की ,
वो कर सके निर्भय होकर सवाल 
लगा सके सवालों की झड़ी ,

आप उनको सिखाना 
सिर्फ प्रश्न उठाना
उनके दिमाग में आप पैदा करना 
तर्क करने की क्षमता।

प्रियंका चौधरी परलीका

Wednesday, September 2, 2020

वर्तमान समय में मिडिया

अर्थव्यवस्था गड़बड़ाई हुई है ,कोरोना वायरस दिनों दिन बढ़ता जा रहा है ,चीनी घुसपैठ जैसी तमाम प्राकृतिक और अप्राकृतिक आपदाओं व  समस्याओं का सामना कर रहा है इस समय हमारा देश । बेरोजगारी भी एक बड़ी समस्या बन कर खड़ी हुई है हमारे सामने ।युवा बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है । बेरोजगारी के चलते समाज में लूटपाट ,चोरी जैसी घटनाएं भी दिन प्रति दिन बढ़ रही है ‌।समाज में अपराध का आंकड़ा हर रोज बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है ।
युवाओं में बढ़ती नशा प्रवृत्ति  भी एक राष्ट्रीय समस्या है ।
पढ़ें लिखे युवा नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं ।भर्तीयों का इंतजार कर रहा है पर सरकार फार्म भरवाकर अभ्यर्थियों से फीस तो वसूल लेती है पर परीक्षा नहीं करा रही ,अगर परीक्षा करवा ली तो परिणाम नहीं घोषित कर रही ,अगर परिणाम घोषित कर दिया तो सफल अभ्यर्थियों को जोइनिंग नहीं दे रहे ।किसान और उसकी खेती पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं ।कहीं अतिवृष्टि से फसलों को नुकसान हो रहा है तो कहीं अनावृष्टि फसलों  को खत्म कररही है ।कहीं फसलें पाला,आंधी एवं टिड्डी के कारण नष्ट हो गई ।कोरोना वायरस तो काबू से बाहर होता जा रहा है ।ऐसी स्थिति में जहां पर ‌सरकार +विपक्ष (संसद) कार्यपालिका और न्यायपालिका सब कछुआ की चाल से काम कर रहे हैं तब जिम्मेदारी आती है राष्ट्र के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता पर ।और मिडिया का वर्तमान समय का हाल आपको पता ही है उस पर लिखने पर भी शर्म आ रही है ।
ऐसे हालत में मिडिया को किसानों की हालत को जानने के लिए नरमे के खेतों में होना चाहिए ,कोरोना से लड़ते मरीजों के साथ हॉस्पिटल में होना चाहिए , बेरोजगार अपने रोजगार की लड़ाई लड़ते रहे हैं उनके बीचोबीच सड़क पर होना चाहिए । कर्मचारी वर्ग वेतन के लिए धरना दे रहे हैं उनके साथ होना चाहिए ।
पर वो है कहां ,मिडिया कहीं दिखाई क्यों नहीं दे रही ‌।मिडिया है किसी नेता की शादी की कवरेज कर रही है ,मिडिया पेश कर रही है कि अंबानी के घर की टाइलेट की लागत कितनी है पर मिडिया ये भूल रही है कि आपका काम अंबानी के घर की टाइलेट की किस्मत बताने का नहीं आपका काम है जो निम्न वर्ग के लोगों के लिए सरकार ने शौचालयों के निर्माण के लिए जो बजट दिया था क्या वो बजट ,उन तक पहुंचा या बीच में ही पचा लिया ।


आज के समय भारत को सच्चे,कर्मठ, ईमानदार पत्रकारों की जरूरत है ।

Sunday, August 30, 2020

आंसू

तुम 
मुस्कुराहट के महल में
चुन कर रखना 
एक कोना 
रोने के लिए ...
आंसूओं को नहीं चाहिए 
महल की रंगीनियां
उसे चाहिए 
सिर्फ संवेदनशील ह्रदय


30/08/2020

जख्म

जाते वक्त तुमने 
कहा था ...
समय हैं ,हर ज़ख्म का मरहम 

भर देगा 
समय के साथ,हर ज़ख्म 

अफसोस 
तुम्हारी बात ग़लत निकली
भरे नहीं जाते 
समय के साथ 
कुछ ज़ख्म
जो किसी अपने ने दिये है ।

Wednesday, August 26, 2020

जीवन

जीवन की पहेली में 
तुम उलझते जाना 
तुम्हें अच्छा लगेगा ।

तुम कोशिश मत करना 
कहीं ठहरकर,
जीवन की पहेली को 
सुलझाने की.....

जीवन की उलझी पहेली को, 
सुलझाने में तुम्हें...
लग जायेंगे वर्ष

तुम जीवन की पहेली को 
सुलझाने के चक्कर में ।
उलझते जाओगे समय की पहेली में ।

प्रियंका चौधरी

26/08/2020

Saturday, August 22, 2020

मोहब्बत का सूरज

अतीत की धुंध में 
आज भी चमकता है
तेरी मुहब्बत का सूरज 
जो डूबा दिया था तुमने।
भरी दुपहरी
जून के किसी दिन।।
pic by Gurpreet Singh

Sunday, August 9, 2020

मां

मजदूर

मजदूर

गांव से शहर आया था,
काम की तलाश में।
शहर ने मुझे काम दिया ,
मैंने शहर को नया रूप दिया ।

मैं बन गया 
एक कारीगर
देने लगा शहर को,
बेहतरीन इमारतें।

शहर ने काम दिया,
काम के बदले पैसे दिये,
 अपनापन नहीं दिया 

हम गांव के मजदूर ,
समझ बैठे, शहर को अपना घर।

देने लगे, शहर को अपना मान,
बेहतरीन इमारतें ।

जब हमें पड़ी शहर में ,
जरूरत आशियाने की।

सारी इमारतों के दरवाजे बंद थे,
हाथ में बैग, कंधे पर बच्चे।
सड़क पर लावारिस हम थे।
                       -  🖊️प्रियंका चौधरी परलीका

प्यार स्वतंत्र है

प्यार स्वतंत्र है 
इसे स्वतंत्र ही रहने दो,
मत जकड़ो धर्म की बेड़ियों में 
मत कैद करो तुम 
जाति की दीवारों में
प्यार स्वतंत्र है।
इसे स्वतंत्र ही रहने दो
तोड़ देगा धर्म की बेड़ियों को 
मिटा देगा जाति की दीवारों को
प्यार स्वतंत्र हैं 
इसे स्वतंत्र ही रहने दो।।

प्रियंका चौधरी

life

इश्क

इश्क 

इश्क था मुझे 
तुम से ...
तुम्हें मुझ से l
हां ,इश्क था हमें l

तुम मुझे...
मैं तुम्हें...
चाहती थी l
मेरी चाहत तुम पर 
तुम्हारी मुहब्बत मुझ पर 
आकर ठहर जाती थी .

मुझे इश्क था तुम्हारी रूह से l
मैं चाहती थी रूह से रूह का मिलन l
तुम्हारा इश्क ,मेरे इश्क से जुदा था ...
तुम्हारे इश्क में छुपी थी वासना ...
जो मेरे समर्पण के आगे ठहर ना सकी ...
इस तरह ...
तुम्हारा इश्क 
मेरे इश्क से 
विदा हो गया ...

प्रियंका चौधरी परलीका
तहसील नोहर जिला हनुमानगढ़ राजस्थान

मैं जैसी हूं

#मैं_जैसी_हूं !

मैं जैसी हूं
वैसा ही मुझे रहने दो...
मैं वैसी ही हूं 
जैसा मैं चाहती हूं l

मुझे मुहब्बत हैं खुद से 
मुझे ऐसा ही रहने दो ..

करते हो तुम मुझ से गर मुहब्बत ,
स्वीकार करो मुझे इसी रूप में !
जिस रूप में मुझे मुहब्बत हैं खुद से ...

तुम चाहते हो ;मैं बदलूं 
तुम्हारे मुताबिक ...

बेशक तुम जा सकते हो दूर 
परहेज हैं मुझे ऐसी मुहब्बत से .....

जो छिन ले मुझ से मेरा अस्तित्व lll

@✒ प्रियंका चौधरी
परलीका

मेरी दुनिया

#मेरी_दुनिया 

जिस रोज 
मेरे पिता ने 
अग्नि को साक्षी मानकर 
सौंपा था ,मेरा हाथ 
तुम्हारे हाथों में ...
उसी रोज 
तुम्हें अपनाकर
मैं चली आई थी 
तुम्हारे संग 
जीने को 
तुम्हारी दुनिया में ....
तुम्हारा ख्वाब
मेरा ख्वाब 
तुम्हारी मुस्कान
मेरी मुस्कान ..
तुम्हारी दुनिया में 
भूल गई अपनी दुनिया 
हां...!
मेरी भी अपनी दुनिया थी .
जिसमें मेरे ख्वाब 
मेरी हसरतें थी .
मेरी अपनी पहचान थी .
तुम अपनी दुनिया में खुश थे .
मैं आपकी दुनिया में खुश थी l
महसूस किया आज मैंने
तुम मेरी मुहब्बत 
मेरे हमसफर हो .
तुमने हमसफर बनकर सिर्फ 
अपनी दुनिया का सफर करवाया ....
कभी ध्यान न दिया मेरी दुनिया की तरफ...
तुमने मुहब्बत की मुझसे बेइंतहा 
पर कभी जीवन मेरे हिस्से का जीने न दिया .
काश! तुम भी कुछ ख्वाब मेरे जी  लेते ..
जैसे मैंने जीया है तुम्हारा हर 
एक ख्वाब .....

                   प्रियंका चौधरी

सफर

सफर में चलते हुए .
जब भी थक कर बैठते हैं .
हो जाते है उदास 
सफर की मुश्किल से .
तब आता है याद 
वो हमसफर 
जो बीच रास्ते में जुदा हो गया हमसे .
बिना वजह के 
गिना कर खामियां हमारी .
जिन खामियों पर कभी नाज था हमें .
वो ही हमसफर की जुदाई का कारण बनीं .
पलभर की उदासी 
पलभर में .
जुनून बन जाती हैं .
याद आता है 
जुदाई का वो मौसम 
जब हम जुदा हुए
बिना कारण के .
झूठी खामियां बताकर.
बिना वजह के झगड. कर .
जुदा होते ही खाई थी कसम ..
सफर में अकेले चलकर 
उससे आगे निकलने की .

वो ही कसम 
आज जुनुन बनकर 
उदासी छीन ले गई मुझसे .

प्रियंका चौधरी
15/5/2018

चरित्रहिनता

चरित्रहिनता 

      वो
   चंचल, बेफ्रिक 
   शरारती मासुम 
   बच्ची 

हां; बोलती ज्यादा थी .
जोर से बोलना 
बात-बात पर 
खिलखिलाकर हंसना.
उसकी आदत में शुमार था 
बेफ्रिक जीवन जीना 
जोर -जोर से हंसना 
हर अदा में शरारती पन,

नहीं कर पाया ये समाज सहन
दे दिया; मासुम हाथों को 
चरित्रहीनता का  अवार्ड

संभाल ना पाया, उसका मासूम दिल 
ये उपहार 
हो गया लहूलूहान
जब पड़ा, पापा का थप्पड़ 
मासुम गाल पर 
तब निकल पड़े खून के आँसू 
उसकी आँखों से ...
जो उसे मिले थे ...
उसकी बेफ्रिक हंसी के बदले .

लड़की का हंसना भी
समाज में चरित्रहीनता है.

प्रियंका चौधरी
14/6/2018

प्यार में धोखा खाई लड़की ।

प्यार में धोखा खाई 
लड़की।
डरती है प्यार के नाम से ।
बिखर जाती है ,
टूट कर अरमानों के साथ ।
प्यार में धोखा खाई लड़की
डरती है प्यार से ।

वो भाग जाना चाहती है ।
उस दुनिया से ,
जहां पर प्यार का जिक्र ना हो ।

उसे लगता है 
दुनिया का हर मर्द,
धोखेबाज,झूठा ,बेवफा है ।

वो भूल जाती है,
अपना सपना,
अपनी मंजिल।

वो करती हैं याद,
वर्तमान की दहलीज पर बैठकर,
अपना अतीत 
और ,कर लेती है  भविष्य बर्बाद।

प्यार‌ में धोखा खाई लड़की ।
बन जाती है जिन्दा लाश ,
दुनिया से टूट चुका होता है उसका हर नाता ।
वो भाग जाना चाहती है ।
ऐसी दुनिया में ,
जहां प्यार का नाम ही न हो ।
उसे प्यार एक साज़िश लगता है ,
किसी की बर्बादी का ।

🖊 प्रियंका चौधरी

अस्तित्व

 तुम लड़ना 

अपने अस्तित्व के लिए

तुम प्रकृति को मानते हो 

अपना अस्तित्व

तुम अशिक्षित हो इस लिए

तुम करते हो प्रकृति की पूजा 

हम शिक्षित होकर

कर रहे हैं ,प्रकृति का दोहन 

अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए ।

जब तक तुम्हारा अस्तित्व हैं

तब तक ये जंगल आबाद रहेंगे ।

एक दिन

शहरी भेड़िया 

दौड़ते हुए ,

जंगल में 

घुस जायेगा ।


कर देगें 

तहस-नहस 

अपने स्वार्थ के लिए 

जंगल को ।


शहरी भेड़िया 

देखकर जंगल की सम्पदा

जल,जमीन ,खनिज

हो जायेगा हिंसक ।


करने लगेगा ,

प्रकृति का बलात्कार 

अपने स्वार्थ और एशो-आराम के लिए ।

शहरी भेड़िया

मचा देगा 

तुम्हारे शांत जंगल में 

आतंक ।

वो तहस नहस करेगा

तुम्हारा आशियाना

तुम्हारी नस्लें।


तुम उठा लेना

अपना हथियार 

खुद को‌,

प्रकृति को

तुम्हारी नस्लों को बचाने के लिए ।

तुम लड़ना 

प्रकृति ,अपने अस्तित्व के लिए ।


शहरी भेड़िया

हार कर भागेगा 

शहर की तरफ

वो अहंकार में अंधा 

स्वीकार कर नहीं पायेगा,

अस्तित्व और स्वार्थ में

अस्तित्व की जीत को ।

वो विचलित हो ,

तुम्हें जंगली ,असभ्य के साथ ,

कर देगा आतंकी घोषित ।



प्रियंका चौधरी परलीका

Thursday, July 30, 2020

टिड्डी प्रकोप से परेशान किसान

(राजस्थान का किसानवर्ग टिड्डियों‌ के प्रकोप से परेशान है और दूसरी तरफ राजस्थान की सरकार अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती नजर आ रही है। सरकार को किसान की चिंता नहीं उसके लिए सत्ता महत्वपूर्ण है। संवेदनशील लेखिका प्रियंका चौधरी ने किसान के दर्द को यहाँ व्यक्त किया है और वहीं शासन तथा प्रशासन के आचरण पर कटाक्ष भी। -गुरप्रीत सिंह)
     मानव सभ्यता का अस्तित्व तब तक कायम है जब तक किसान और कृषि का अस्तित्व हैं। जिस दिन किसान और कृषि विलुप्त हो जायेगी उस दिन मानव जाति का विनाश निश्चित हैं। उस दिन मानव की विज्ञान और उसके प्रयोग कुछ काम नहीं करेंगे। विज्ञान और प्रकृति एक दूसरे के समानांतर चलती है न कि पूरक। हम विज्ञान में बहुत कुछ हासिल करना चाहते हैं इस लिए प्रकृति को भुला रहे हैं। आज के समय हमारे देश में सबसे अधिक मानसिक और शारीरिक चुनौतियों का सामना किसान कर रहा है।
      सरकार को किसानों की याद सिर्फ चुनाव के समय आती है ।
भारत की 70 प्रतिशत आबादी गांव में निवास करती है तथा उनका मुख्य व्यवसाय कृषि कार्य है।
      जिस देश की जनसंख्या का सत्तर फीसदी हिस्सा कृषि पर अपना जीवनयापन कर रहे हैं उसी देश में कृषि को उधोग का दर्जा नहीं मिला,  इससे बड़ी विडंबना की बात क्या हो सकती है। 
     राजस्थान में पिछले दिनों से टिडी का भयंकर प्रकोप चल रहा है।किसान और उसका परिवार पूरी तरह से परेशान हैं। सुबह से शाम तक अपनी अपनी फसलों को बचाने की जुगत में लगा है।

        मैं हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील के गांव परलीका से हूँ।मेरा जिला अर्द्ध सिंचित क्षेत्र है। यहां की अधिकांश फसलें बारीश पर निर्भर है। इस बार बारीश कम होने की वजह से फसलें बहुत कम है।
हमारे गांव में और आसपास के गांवों में पिछले चार पांच दिनों से टिडियों ने अपना तांडव मचा रखा है।
गांव के हर परिवार का हर छोटा मोटा सदस्य हाथों में थाली लेकर अपनी फसल बचाने में लगा है। छोटे छोटे बच्चे, हाथों में थाली लेकर फसलों में भागते हुए दिखाई देते हैं तो लगता है। चारों तरफ से थाली और ढोल की आवाजें आ रही है, आसमान पर टिडियों ने अपना कब्जा कर रखा है।
पर अभी भी मेरे देश के किसान ने हार नहीं मानी, हमारा पेट भरने के लिए अपनी दूसरी पीढी तैयार कर रहा है।
    किसान वर्तमान समय में शारीरिक और मानसिक तनाव से गुजर रहा है। एक तो वो टिडियों को भगाने के लिए लगा हुआ है वहीं उसको फ्रिक लगी हुई है कि अगर फसल खराब हो गई तो उसके परिवार का क्या होगा।
      शासन और प्रशासन तो लगता है कुंभकर्ण की नींद में सोये हुए हैं। न तो किसानों के पास समय पर कीटनाशक पहुंच रहा और न ही कृषि विभाग के अधिकारी सही तरीके से सर्वे कर रहे हैं।
      प्रशासन को इस समय ईमानदारी से अपना कार्य करना चाहिए, अगर उनके पास प्राप्त संख्या में कीटनाशक वगैरह नही है तो भी हर पीडित किसान तक प्रशासन को पहुंचना चाहिए क्योंकी इससे किसानों को हिम्मत बढेगी और वो अकेला महसूस नहीं करेगी।

  शासन का जिक्र तो यहां करना ही नहीं चाहिए क्यों कि राजस्थान की राजनीति की उथल-पुथल आप सबके सामने है। और जनता द्वारा चुने गए, टिडी रूपी जनप्रतिनिधि, होटलों में बंद हैं और हमारे मुख्यमंत्री साहब अपनी सरकार रूपी फसल को टिडियों से बचाने में लगे हुए हैं। पर नेताओं को सोचना चाहिए की अगर हमने असली फसल को नहीं बचाया तो हमारा विनाश निश्चित हैं। मैं शासन और प्रशासन से इतना ही कहना चाहूंगी की अगर आपके पास टिडियों से लडने के लिए हथियार नहीं है तो अपने अंदर की संवेदनशीलता को भी आप हथियार बनाकर एक दूसरे को हौसला दे सकते हो ।

प्रियंका चौधरी परलीका
मरु परिक्रमा (हनुमानगढ़ और जयपुर से प्रकाशित समाचार पत्र)
प्रकाशन तिथि- 30.07.2020

Monday, July 20, 2020

मजदूर - कविता

मजदूर का नहीं होता,
कोई धर्म
कोई जाति।
मजदूर समझता है,
कर्म को धर्म,
रोटी को जाति।
मजदूर करता है,
अपने लिए,
अपने परिवार के लिए 
दिन रात मेहनत।
उसे नहीं पड़ता फर्क,
उसके मालिक के धर्म से।
उसे करना है कर्म।
मजदूर को चाहिए,
सिर्फ काम।
मालिक राम हो चाहे रहीम

मालिक भी कब देखता है,
किसी मजदूर की जाति,
उसे तो वो मजदूर चाहिए,
जो दो रूपये कम लेता है।
मजदूर का नहीं होता कोई धर्म
 समझता है काम को अपना धर्म।

धर्म और जाति नहींं आई 
गरीब के हिस्से।
गरीब के हिस्से आई है सिर्फ मेहनत।
धर्म और जाति 
अमीरों के हिस्से आई है।
जब चाहे करवा सकते हैं।
जाति धर्म पर दंगे।
करवा कर दंगे 
छुप जाते हैं घरों में।
और‌ बेमौत मारे जाते हैं ,
मजदूर,
जिनके घर आये ही नहीं,
कभी जाति और धर्म।
आज आये तो मौत बनकर।

प्रियंका चौधरी परलीका
9/05/2020

हमारे सपने

हर व्यक्ति जीवन में कुछ हासिल करना चाहता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सपने होते हैं और  व्यक्ति उन्हें पूरा करना चाहता है ।

    व्यक्ति का जीवन कुछ सपनों व वजह के कारण ही रोचक व क्रियाशील होता है। वजह होने पर ही व्यक्ति वक्त के साथ दौड़ता है और वक्त से आगे भी निकलकर कुछ नया कर जाता है।
    कुछ लोगों के पास सपने तो होते है पर सपनों को पूरा करने की वजह नहीं होती। ऐसे लोग वक्त के साथ दौड़ते तो नहीं पर कदमताल जरूर करते हैं, और जीवन में कदमताल करते हुए थककर , सपने के साथ, वक्त के किसी मोड़ पर रूक जाते हैं, ठहर जाते हैं। जीवन में ठहराव चाहते हैं और सोचते हैं काश, वक्त भी रुक जाये, पर समय ना तो किसी का इंतजार करता है और ना ही रुकता।
      समय को ठहरना पसन्द नहीं। समय के पास आगे बढ़ने की शायद बहुत सारी वजह होती है।इसी ठहराव के कुछ समय बाद लगभग ऐसे सभी व्यक्तियों को आगे बढ़ाने व सपना पूरा करने ही वजह मिल जाती है।  ऐसे व्यक्तियों के सपने अपने व वजह कोई और होते हैं।
      ठहराव के समय किसी के कंधे पर जिम्मेदारी आ जाती है तो किसी के जीवन में मुहब्बत का आगमन हो जाता है।  किसी को अपने साथ वाले से प्रतिस्पर्धा हो जाती है। हर व्यक्ति को सपना पूरा करने की वजह मिल जाती है ।वजह के साथ अपना सपना पूरा होने का अहसास ही अलग होता है।
जीवन में ठहराव भी जरूरी है।

वजह की तलाश करो,सपने पूरा करने की पहली मंजिल वजह है।

🖇🖊प्रियंका चौधरी

माँ की छाया- कविता

मां छाया है पेड़ की ।
जिसकी आगोश में बच्चे महफूज रहते हैं ।
पिता तना है ,
उसी पेड़ का ।
जिसकी छाया में बच्चे महफूज रहते हैं ।
मां का प्यार ,
छाया की शीतल में ,
बच्चे महसूस कर जाते हैं ।
पिता का प्यार ,
तने की कठोरता में ,
छुपा रह जाता है ।
मां रूपी छाया का अस्तित्व,
पिता रूपी तने में ,
छुपा रह जाता  है ।

प्रियंका चौधरी

परछाई - कविता

कभी कभी
सुकुन देता हैं,
अपनी परछाई देखना 
अपनी परछाई से बातें करना ।

कुछ बातें…
जो हमारे दिमाग में होती है ,
दिल कहने नहीं देता ।
कुछ बातें …
हमारे दिल में होती है,
दिमाग कहने नहीं देता।

दिल-दिमाग की कसमकस में ,
कभी कभी वो बातें ,
हम अपनी परछाई से कर लेते हैं ।

मुझे सुकुन देता है ,
अपनी परछाई से,
बतियाना….गुनगुनाना

बहुत सारी बातें 
मैं करना चाहती हूं साझा ,
दुनिया से ।
किसी अजीज से !
पर कर नहीं सकती ,
मुझे डर लगता है ।
मैं डरपोक हूं ।

मैं दुनिया की तरह नहीं सोचती ।
वो हर हाल में मुझे ग़लत समझेगी ।
कुछ बातें मुझे कमजोर
कुछ बातें मुझे पागल बनाती है,
कुछ बातें दीवाना ‌।


मुझे डर नहीं लगता 
दुनिया मुझे पागल, दीवाना, कमजोर समझे।

फिर भी मैं डरपोक हूँ। ।


मुझे पसंद नहीं …
दुनिया में ,
पागल, कमजोर, दीवाना कहलाना ।

मुझे पसंद नहीं 
ये दुनिया ,
मेरे नाम के अलावा
किसी और नाम से पुकारे ।

मुझे नाम , पहचान से डर लगने लगाना है ।
नाम देकर ,छिन लेती है ये दुनिया आजादी ।
मैं बेटी हूं ,
पहले ही समाज ने नाम देकर ,
जकड़ा रखा है मुझे बेडीयों में।
प्रियंका चौधरी परलीका
एम. ए. (हिन्दी साहित्य)
विधि स्नातक (अध्ययनरत)

प्रियंका बैनिवाल- मेरा परिचय


इज्जत