Tuesday, September 29, 2020

बेटी

बेटी - कविता
स्वर्ण या दलित नहीं होती,
बेटी 
गरीब या अमीर नहीं होती।

स्वर्ण और दलित
अमीर और गरीब 
आदमी की सोच होती है 
जिससे इस समाज का निर्माण हुआ है।
बेटी का कोई जाति, धर्म नहीं होता।
Pic by Google
प्यार और प्रेम के लिए,
जो छोड़ आती है अपने जन्म का घर,
जाति, धर्म और अपने नाम के साथ।
जो अब तक उसकी पहचान थी।

ना बेटी कमजोर है 
ना ही अबला 
कमजोर तो है 
समाज की सोच 
जो बेटी की ताकत को 
ना तो समझ पाई 
और ना ही 
पचा पाई।

अन्याय का शिकार होती आई है,
फिर भी मर्दों को जन्म देती आई है
घृणा है मुझे 
 समाज के हर उस कीड़े से 
समाज की उस मानसिकता से 
जो स्त्री को सिर्फ 
वासना समझकर इस्तेमाल करता है।

- प्रियंका बैनीवाल

30/09/2020

Wednesday, September 16, 2020

न्यायपालिका और हिंदी

मानव इतिहास की सबसे बड़ी खोज भाषा है ।भाषा ही एक ऐसा साधन है ,जो इंसान और जानवर में अंतर पैदा करता है ।भाषा ही एक ऐसा आधार है जिसके आधार पर हम कह सकते हैं कि हम मनुष्य हैं ।मानव की प्रगति में भाषा का अहम योगदान रहा है।

भाषा के इतिहास पर  नजर डालें तो भाषा का इतिहास बहुत लम्बा -चौडा है ,जो अनेक युद्ध, क्रांतियों ,रीति-रिवाजों से गुजरता हुआ आज बीसवीं सदी के बीसवें वर्ष की दहलीज पर खड़ा है ।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है ।समय -समय पर अनेक भाषाओं का अविष्कार हुआ ,अनेक भाषा विलुप्त भी हुई कुछ भाषाओं का स्वरुप बदला ।
एक शोध के अनुसार , विश्व में लगभग कुल 6809 भाषाएं हैं  ।
भाषा ही वो माध्यम है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने आप को अभिव्यक्त कर सकता है ।भाषा के माध्यम से ही व्यक्ति समाज में जुड़ा रहता है । प्यार के गीत,विरह की वेदना ,पिता की डांट, मां की ममता को हम भाषा के माध्यम से ही अभिव्यक्त कर सकते हैं ।
भारत के संविधान ने भी हर इंसान को बोलने का अधिकार दिया हैं ।भारत के संविधान का अनुच्छेद 19(के)वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में हैं ।

हिंदी भाषा और हम ----

हिंदी हमारी मातृभाषा हैं , हिन्दी से हमारा खून का रिश्ता है। हिंदी को 14सितम्बर 1949को हमारी राजभाषा घोषित कर दिया गया था ‌और संविधान के अनुच्छेद 343से 351तक में राजभाषा के सम्बन्ध में व्यवस्था कर दी गई ।
विडम्बना की बात है कि आजादी के 74वर्ष बाद भी आज हमारी मातृभाषा हिंदी ने राष्ट्र भाषा का पद नहीं लिया । वर्तमान आंकड़ों के अनुसार ,एक अरब 36करोड आबादी वाले हिंदूस्थान की मातृभाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में मान्यता नहीं मिली ।
अपनी भाषा के वगैरह राष्ट्र गुगां होता है वो ही हालात वर्तमान में भारत के साथ हो रही है । विश्व की तीसरी सबसे बड़ी बोली जाने वाली हिंदी भाषा के साथ ,अपने ही घर में सौतेला व्यवहार किया जा रहा है । हिंदी एक समृद्ध भाषा होते हुए भी उसको राजभाषा का दर्जा देकर आज हम अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं ।हम संकीर्ण मानसिकता का शिकार होकर हिंदी को नजरंदाज करके अग्रेजी भाषा में अपना करीयर बनाने की तरफ दौड़ रहे हैं ।ये हम युवाओं की एक अंधी दौड़ है जो किसी रोज़ हमें गर्त में धकेल देगी ।
इस हिंदी दिवस के मौके पर हमें इस सवाल का जवाब तलाशना होगा ...
हम देशवासियों के सामने एक महत्वपूर्ण प्रश्न ये है कि आज हमारे पास हमारी समृद्ध भाषा होते हुए भी हम अंग्रेजी के पिछे क्यों दौड़ रहे  हैं?

हिंदी विश्व की सबसे तीसरी बड़ी भाषा है जिसको , विश्व के सतर करोड़ लोग बोलते हैं जो अंग्रेजी (112अरब )और चीन की मैड्रेन (111.7करोड) के बाद भाषाओं की श्रेणी में अपना तीसरा स्थान रखती है ।



#न्यायपालिका_और_हिंदी_भाषा-------

किसी लोकतांत्रिक देश में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका महत्वपूर्ण स्तम्भ है । लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए तीनों अंगों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। लोकतंत्र को मजबूत और उसकी नींव को मजबूत बनाने में न्यायपालिका का विशेष स्थान होता है ।
किसी देश की न्यायपालिका जागरूक है तो उस देश का नागरिक भी जागरूक और कर्त्तव्यनिष्ठ होता है । इंसान के जन्म के साथ ही उस पर उस देश के अधिकार और कर्त्तव्य लागू हो जाते हैं ।मानव की प्रवृत्ति रही है कि वो अधिकार की मांग तो करता है पर‌ कर्त्तव्य का पालन करने में आनाकानी करता है । मानव समुदाय को अधिकार और कर्तव्य के प्रति जागरूक करने में न्यायपालिका का अहम योगदान होता है ।

किसी देश या राष्ट्र का कानून बनाने में और उसको लागू करने में उस देश की भाषा का महत्वपूर्ण  स्थान होता है ।अगर हम किसी देश के कानून को किसी अन्य देशकी भाषा में बना दे तो वो कानून उस देश के लिए नाकारा साबित होगा ।
विडंबना की बात है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का कानून उनकी खुद की भाषा हिन्दी में नहीं बल्कि अंग्रेजी में हैं ।
मैं यहां भारत के संविधान के किसी अनुच्छेद या अध्याय की बात नहीं करूंगी जो भाषाओं के सम्बन्ध में बने है और ना ही किसी संविधान संशोधन द्वारा जोड़े गये कानून का जिक्र करूंगी।मैं बस यहां बात करूंगी भारत की न्यायपालिका पर अंग्रेजी का अधिपत्य होने से आमजन को होने वाली परेशानी के बारे में।

भारत की न्यायपालिका ,अंग्रेजी भाषा पर आधारित है ।इस वजह से हमेशा , हमारे समाज को निष्पक्ष न्याय प्राप्त करने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
किसी देश को अपना  कानून ,अपने देश की भाषा में सरल और स्पष्ट रूप में बनाने चाहिए जिसको आमजन अच्छी तरह से समझ लें पर विडम्बना की बात है कि हमारे देश के लगभग कानून अंग्रेजी भाषा में बनते हैं ,भाषा की वजह से आमजन को कानून की बारिकियों को समझने में बहुत सारी अड़चनों का सामना करना पड़ता है ‌।इस लिए किसी देश  के प्रत्येक नागरिक को निष्पक्ष न्याय सुलभ कराने के लिए अपनी भाषा का होना अनिवार्य है ।
राष्ट्रपति महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि 'यह क्या कम ज़ुल्म की बात है की मुझे अपने ही देश में अगर इंसाफ पाना है तो मुझे अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करना पड़ता है ' 
उन्होंने कहा कि मैं बैरिस्टर होने पर भी मैं अपनी भाषा नहीं बोल सकता तो दूसरे आदमी को मेरे लिए तर्जुमा कर देना चाहिए ।यह कुछ दंभ हैं?यह गुलामी की हद नहीं तो और क्या है?इसमें मैं अंग्रेजी का दोष निकालूं या अपना ? हिंदुस्तान को गुलाम बनाने वाले तो हम अंग्रेजी जानने‌वाले लोग हैं ।
हमारे देश में हर रोज नियम लागू होते हैं कि उच्चतम न्यायालय अपने फैसले हिंदी में देगा, न्यायपालिका अपनी सुनवाई हिंदी में करेगी पर हकीकत में ऐसा नहीं होता ये नियम सिर्फ कागजों में लागू होते हैं ।
अब मैं बात करूंगी कानून की पढ़ाई की …..
हमारे देश में कानून की पढ़ाई बहुत ही खर्चीली और अंग्रेजी भाषा में है । कुछ विश्व विद्यालय और महाविद्यालय अब हिंदी भाषा में भी कानून की पढ़ाई करवाने लगे हैं पर उनके प्रति विद्यार्थी वर्ग का रूझान कम है क्योंकी हिंदी में ना तो अच्छे शिक्षक है और ना ही हिंदी भाषा में कानून की किताबें इस कारण अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी भाषा से कानून की शिक्षा करने पर बल दे रहे हैं ।
जो बच्चें अंग्रेजी भाषा में कानून की पढ़ाई कर रहे हैं जब वो वकालत या न्याय के मैदान में सेवा करने के लिए आयेगे तो उन्हें सिर्फ अंग्रेजी भाषा का ही ज्ञान होगा जो आमजन के लिए सबसे बड़ी समस्या बनेगा ।
सामान्य जनता हिंदी भाषी होगी और न्यायपालिका के लोग अंग्रेजी भाषा को जानने समझने वाले होंगे तो न्यायपालिका निष्पक्ष न्याय नहीं कर पायेगी क्योंकि उनके मध्य भाषा की दूरी होगी ।भाषा की दूरी की वजह से न्याय में अवरूद्ध पैदा होगा जो लोकतंत्र के प्रत्येक नागरिक के लिए चिंताजनक है ।इस लिए भाषाई दूरी को मिटाने के लिए कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को मिलकर इस तरफ ध्यान देना चाहिए और जितना जल्दी हो सके इसका सामाधान करना चाहिए ।


जय हिन्द जय भारत 


प्रियंका चौधरी परलीका

राजभाषा परिवार की तरफ से जारी ई बुक में आलेख 

Monday, September 14, 2020

हिंदी दिवस

हिन्दी दिवस

दुनिया की भीड़ में 
दूर से
मां के ललाट पर
चमकती बिंदी देखकर 
हजारों में, मैं अपनी मां को
पहचान लेती हूं ।
ठीक उसी तरह 
भाषाओं के प्रांगण में
शब्दों के जाल में
चन्द्र बिन्दु से शोभित 
शब्दों को देखते ही 
पहचान लेती हूं 
ये मां , हिन्दी के बच्चे हैं ।
जिनसे मेरा खून का रिश्ता हैं।।

प्रियंका चौधरी

Wednesday, September 9, 2020

विश्व आत्महत्या निरोध दिवस 10सितम्बर 2020

इन दिनों स्कूली परीक्षाओं के परिणाम जारी हुए हैं । प्रतिस्पर्धा के दौर में विद्यार्थियों ने शत प्रतिशत तक अंक प्राप्त किये है ।विज्ञापन के इस दौर में हर तरफ सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों के पोस्टर से ,शहर की सड़कें ,दिवारे ,बस स्टैंड आदि भरे पड़े हैं ।हमने किसी वस्तु विशेष। का प्रचार तो सुना था पर अब तो विद्यार्थियों के अंकों का प्रचार करके विद्यार्थी वर्ग का मानसिक और आर्थिक शोषण हो रहा है ।आज के समय की सबसे बड़ी विडंबना ये है कि हमें हर चीज टॉप चाहे ,चाहे वो हमारे कपड़े हो , जूते हो चाहे गाड़ी।इस आधुनिकता वो फैशन की इस चमक में हमें हमारे बच्चों का रिजल्ट भी टॉप चाहिए ।हमारी सबसे बड़ी भूल ये होती है कि जो सपने हमने देखे थे और पूरे नहीं हुए उन सपनों को अपने बच्चों पर थोप देते हैं और उनके मजबूर करते हैं ,अपने सपने पूरा करने की ।हमारी ये भूल ही बच्चों में तनाव, चिड़चिड़ापन पैदा करती है ।हम ये भूल जाते हैं कि हर इंसान का सपना अलग अलग होता है ।हम बच्चे थे तब सपने देखते थे वो सपने अपने थे तो अपने बच्चों को सपना देखने से क्यों रोक रहे हैं ।हमारी इसी भूल के कारण हम कई बार अपने बच्चों को खो भी देते हैं । हर रोज खबरों में सुनने को मिलता है कि परीक्षा परिणाम से निराश होकर बच्चे ने की आत्महत्या । आत्महत्या के बढ़ते इस ग्राफ से  समाज को बहुत बड़ा खतरा है । अभिभावकों को इस बात को समझना चाहिए कि हर इंसान के दिमाग का आईक्यू लेवल अलग अलग होता है और हर इंसान को प्रकृति ने अलग अलग हुनर दिये है ।कोई अच्छा खिलाडी है तो कोई अच्छा डाक्टर ,कोई अच्छा कलाकार है तो कोई अच्छा शिक्षक ।इस लिए हमें हमारे बच्चों की काबिलियत को पहचाना होगा ।

वर्तमान दौर की इस विकट परिस्थिति में लिखी मेरी कविता हर उस लड़के को समर्पित है जो परीक्षा परिणाम में असफल हुआ है या कम अंक के साथ उत्तीर्ण हुआ है ।



जिन्दगी के 
पथरीले रास्तों में
नहीं आयेगी ।
तुम्हारे काम
किताबों को पढ़कर 
हासिल की गई
शत प्रतिशत अंकों की डिग्री।

उस समय 
तुम्हारे काम आयेगा
पथरीले रास्तों में चलने का
तुम्हारा अनुभव
तुम्हारा हुनर
तुम्हारी ताकत
इसलिए,
महज कागज के टुकड़े से
निराश होकर
तुम मत त्याग देना
अपना जीवन
जो खड़ा इंतजार कर रहा है।
सुनहरे भविष्य की दहलीज पर।

कागज के टुकड़े से
निराश होकर
तुम भूल मत जाना
अपना हुनर
जो तुम्हें 
दिया है प्रकृति ने
तौहफे में
कुछ नया 
करने के लिए 

ये कागज का टुकड़ा 
जिसको देखकर 
तुम परेशान हो
निराश हो
ये कागज का टुकड़ा 
सिर्फ कागजी परीक्षा का परिणाम है 

तुम्हें उत्तीर्ण करनी है 
जीवन की असली परीक्षा 
जो किसी कागजी डिग्री की मोहताज नहीं 
इसके लिए 
तुम्हें तुम्हारे
हुनर को 
पहचानना होगा
निकलना होगा 
मंजिल की तलाश में
सफर पर 
अभी से 
आज से ।





Saturday, September 5, 2020

शिक्षक

लोकतंत्र में भी 
खामोश है हम 
पुछने से डरते हैं 
सवाल
हिम्मत नहीं जुटा पाते 
सवाल करने की 
बचपन में 
शिक्षक ने झिड़क दिया था 
सवाल पुछने पर 
तभी से लगता है डर 
कहीं सवाल करने पर‌
उत्तर के बदले
डांट /सजा ना मिल जाये ।
भविष्य निर्माता ,
शिक्षकों ...
मेरा अनुरोध है आपसे 
आप बच्चों को ,
सवाल करना सिखाना
वो उत्तर खुद ढूंढ लायेंगे ।
जब भी हालात पैदा होगी 
सरकार, न्यायपालिका, कार्यपालिका से 
सवाल करने की ,
वो कर सके निर्भय होकर सवाल 
लगा सके सवालों की झड़ी ,

आप उनको सिखाना 
सिर्फ प्रश्न उठाना
उनके दिमाग में आप पैदा करना 
तर्क करने की क्षमता।

प्रियंका चौधरी परलीका

Wednesday, September 2, 2020

वर्तमान समय में मिडिया

अर्थव्यवस्था गड़बड़ाई हुई है ,कोरोना वायरस दिनों दिन बढ़ता जा रहा है ,चीनी घुसपैठ जैसी तमाम प्राकृतिक और अप्राकृतिक आपदाओं व  समस्याओं का सामना कर रहा है इस समय हमारा देश । बेरोजगारी भी एक बड़ी समस्या बन कर खड़ी हुई है हमारे सामने ।युवा बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है । बेरोजगारी के चलते समाज में लूटपाट ,चोरी जैसी घटनाएं भी दिन प्रति दिन बढ़ रही है ‌।समाज में अपराध का आंकड़ा हर रोज बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है ।
युवाओं में बढ़ती नशा प्रवृत्ति  भी एक राष्ट्रीय समस्या है ।
पढ़ें लिखे युवा नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं ।भर्तीयों का इंतजार कर रहा है पर सरकार फार्म भरवाकर अभ्यर्थियों से फीस तो वसूल लेती है पर परीक्षा नहीं करा रही ,अगर परीक्षा करवा ली तो परिणाम नहीं घोषित कर रही ,अगर परिणाम घोषित कर दिया तो सफल अभ्यर्थियों को जोइनिंग नहीं दे रहे ।किसान और उसकी खेती पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं ।कहीं अतिवृष्टि से फसलों को नुकसान हो रहा है तो कहीं अनावृष्टि फसलों  को खत्म कररही है ।कहीं फसलें पाला,आंधी एवं टिड्डी के कारण नष्ट हो गई ।कोरोना वायरस तो काबू से बाहर होता जा रहा है ।ऐसी स्थिति में जहां पर ‌सरकार +विपक्ष (संसद) कार्यपालिका और न्यायपालिका सब कछुआ की चाल से काम कर रहे हैं तब जिम्मेदारी आती है राष्ट्र के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता पर ।और मिडिया का वर्तमान समय का हाल आपको पता ही है उस पर लिखने पर भी शर्म आ रही है ।
ऐसे हालत में मिडिया को किसानों की हालत को जानने के लिए नरमे के खेतों में होना चाहिए ,कोरोना से लड़ते मरीजों के साथ हॉस्पिटल में होना चाहिए , बेरोजगार अपने रोजगार की लड़ाई लड़ते रहे हैं उनके बीचोबीच सड़क पर होना चाहिए । कर्मचारी वर्ग वेतन के लिए धरना दे रहे हैं उनके साथ होना चाहिए ।
पर वो है कहां ,मिडिया कहीं दिखाई क्यों नहीं दे रही ‌।मिडिया है किसी नेता की शादी की कवरेज कर रही है ,मिडिया पेश कर रही है कि अंबानी के घर की टाइलेट की लागत कितनी है पर मिडिया ये भूल रही है कि आपका काम अंबानी के घर की टाइलेट की किस्मत बताने का नहीं आपका काम है जो निम्न वर्ग के लोगों के लिए सरकार ने शौचालयों के निर्माण के लिए जो बजट दिया था क्या वो बजट ,उन तक पहुंचा या बीच में ही पचा लिया ।


आज के समय भारत को सच्चे,कर्मठ, ईमानदार पत्रकारों की जरूरत है ।

इज्जत