Tuesday, September 29, 2020

बेटी

बेटी - कविता
स्वर्ण या दलित नहीं होती,
बेटी 
गरीब या अमीर नहीं होती।

स्वर्ण और दलित
अमीर और गरीब 
आदमी की सोच होती है 
जिससे इस समाज का निर्माण हुआ है।
बेटी का कोई जाति, धर्म नहीं होता।
Pic by Google
प्यार और प्रेम के लिए,
जो छोड़ आती है अपने जन्म का घर,
जाति, धर्म और अपने नाम के साथ।
जो अब तक उसकी पहचान थी।

ना बेटी कमजोर है 
ना ही अबला 
कमजोर तो है 
समाज की सोच 
जो बेटी की ताकत को 
ना तो समझ पाई 
और ना ही 
पचा पाई।

अन्याय का शिकार होती आई है,
फिर भी मर्दों को जन्म देती आई है
घृणा है मुझे 
 समाज के हर उस कीड़े से 
समाज की उस मानसिकता से 
जो स्त्री को सिर्फ 
वासना समझकर इस्तेमाल करता है।

- प्रियंका बैनीवाल

30/09/2020

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