Wednesday, September 16, 2020

न्यायपालिका और हिंदी

मानव इतिहास की सबसे बड़ी खोज भाषा है ।भाषा ही एक ऐसा साधन है ,जो इंसान और जानवर में अंतर पैदा करता है ।भाषा ही एक ऐसा आधार है जिसके आधार पर हम कह सकते हैं कि हम मनुष्य हैं ।मानव की प्रगति में भाषा का अहम योगदान रहा है।

भाषा के इतिहास पर  नजर डालें तो भाषा का इतिहास बहुत लम्बा -चौडा है ,जो अनेक युद्ध, क्रांतियों ,रीति-रिवाजों से गुजरता हुआ आज बीसवीं सदी के बीसवें वर्ष की दहलीज पर खड़ा है ।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है ।समय -समय पर अनेक भाषाओं का अविष्कार हुआ ,अनेक भाषा विलुप्त भी हुई कुछ भाषाओं का स्वरुप बदला ।
एक शोध के अनुसार , विश्व में लगभग कुल 6809 भाषाएं हैं  ।
भाषा ही वो माध्यम है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने आप को अभिव्यक्त कर सकता है ।भाषा के माध्यम से ही व्यक्ति समाज में जुड़ा रहता है । प्यार के गीत,विरह की वेदना ,पिता की डांट, मां की ममता को हम भाषा के माध्यम से ही अभिव्यक्त कर सकते हैं ।
भारत के संविधान ने भी हर इंसान को बोलने का अधिकार दिया हैं ।भारत के संविधान का अनुच्छेद 19(के)वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में हैं ।

हिंदी भाषा और हम ----

हिंदी हमारी मातृभाषा हैं , हिन्दी से हमारा खून का रिश्ता है। हिंदी को 14सितम्बर 1949को हमारी राजभाषा घोषित कर दिया गया था ‌और संविधान के अनुच्छेद 343से 351तक में राजभाषा के सम्बन्ध में व्यवस्था कर दी गई ।
विडम्बना की बात है कि आजादी के 74वर्ष बाद भी आज हमारी मातृभाषा हिंदी ने राष्ट्र भाषा का पद नहीं लिया । वर्तमान आंकड़ों के अनुसार ,एक अरब 36करोड आबादी वाले हिंदूस्थान की मातृभाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में मान्यता नहीं मिली ।
अपनी भाषा के वगैरह राष्ट्र गुगां होता है वो ही हालात वर्तमान में भारत के साथ हो रही है । विश्व की तीसरी सबसे बड़ी बोली जाने वाली हिंदी भाषा के साथ ,अपने ही घर में सौतेला व्यवहार किया जा रहा है । हिंदी एक समृद्ध भाषा होते हुए भी उसको राजभाषा का दर्जा देकर आज हम अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं ।हम संकीर्ण मानसिकता का शिकार होकर हिंदी को नजरंदाज करके अग्रेजी भाषा में अपना करीयर बनाने की तरफ दौड़ रहे हैं ।ये हम युवाओं की एक अंधी दौड़ है जो किसी रोज़ हमें गर्त में धकेल देगी ।
इस हिंदी दिवस के मौके पर हमें इस सवाल का जवाब तलाशना होगा ...
हम देशवासियों के सामने एक महत्वपूर्ण प्रश्न ये है कि आज हमारे पास हमारी समृद्ध भाषा होते हुए भी हम अंग्रेजी के पिछे क्यों दौड़ रहे  हैं?

हिंदी विश्व की सबसे तीसरी बड़ी भाषा है जिसको , विश्व के सतर करोड़ लोग बोलते हैं जो अंग्रेजी (112अरब )और चीन की मैड्रेन (111.7करोड) के बाद भाषाओं की श्रेणी में अपना तीसरा स्थान रखती है ।



#न्यायपालिका_और_हिंदी_भाषा-------

किसी लोकतांत्रिक देश में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका महत्वपूर्ण स्तम्भ है । लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए तीनों अंगों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। लोकतंत्र को मजबूत और उसकी नींव को मजबूत बनाने में न्यायपालिका का विशेष स्थान होता है ।
किसी देश की न्यायपालिका जागरूक है तो उस देश का नागरिक भी जागरूक और कर्त्तव्यनिष्ठ होता है । इंसान के जन्म के साथ ही उस पर उस देश के अधिकार और कर्त्तव्य लागू हो जाते हैं ।मानव की प्रवृत्ति रही है कि वो अधिकार की मांग तो करता है पर‌ कर्त्तव्य का पालन करने में आनाकानी करता है । मानव समुदाय को अधिकार और कर्तव्य के प्रति जागरूक करने में न्यायपालिका का अहम योगदान होता है ।

किसी देश या राष्ट्र का कानून बनाने में और उसको लागू करने में उस देश की भाषा का महत्वपूर्ण  स्थान होता है ।अगर हम किसी देश के कानून को किसी अन्य देशकी भाषा में बना दे तो वो कानून उस देश के लिए नाकारा साबित होगा ।
विडंबना की बात है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का कानून उनकी खुद की भाषा हिन्दी में नहीं बल्कि अंग्रेजी में हैं ।
मैं यहां भारत के संविधान के किसी अनुच्छेद या अध्याय की बात नहीं करूंगी जो भाषाओं के सम्बन्ध में बने है और ना ही किसी संविधान संशोधन द्वारा जोड़े गये कानून का जिक्र करूंगी।मैं बस यहां बात करूंगी भारत की न्यायपालिका पर अंग्रेजी का अधिपत्य होने से आमजन को होने वाली परेशानी के बारे में।

भारत की न्यायपालिका ,अंग्रेजी भाषा पर आधारित है ।इस वजह से हमेशा , हमारे समाज को निष्पक्ष न्याय प्राप्त करने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
किसी देश को अपना  कानून ,अपने देश की भाषा में सरल और स्पष्ट रूप में बनाने चाहिए जिसको आमजन अच्छी तरह से समझ लें पर विडम्बना की बात है कि हमारे देश के लगभग कानून अंग्रेजी भाषा में बनते हैं ,भाषा की वजह से आमजन को कानून की बारिकियों को समझने में बहुत सारी अड़चनों का सामना करना पड़ता है ‌।इस लिए किसी देश  के प्रत्येक नागरिक को निष्पक्ष न्याय सुलभ कराने के लिए अपनी भाषा का होना अनिवार्य है ।
राष्ट्रपति महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि 'यह क्या कम ज़ुल्म की बात है की मुझे अपने ही देश में अगर इंसाफ पाना है तो मुझे अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करना पड़ता है ' 
उन्होंने कहा कि मैं बैरिस्टर होने पर भी मैं अपनी भाषा नहीं बोल सकता तो दूसरे आदमी को मेरे लिए तर्जुमा कर देना चाहिए ।यह कुछ दंभ हैं?यह गुलामी की हद नहीं तो और क्या है?इसमें मैं अंग्रेजी का दोष निकालूं या अपना ? हिंदुस्तान को गुलाम बनाने वाले तो हम अंग्रेजी जानने‌वाले लोग हैं ।
हमारे देश में हर रोज नियम लागू होते हैं कि उच्चतम न्यायालय अपने फैसले हिंदी में देगा, न्यायपालिका अपनी सुनवाई हिंदी में करेगी पर हकीकत में ऐसा नहीं होता ये नियम सिर्फ कागजों में लागू होते हैं ।
अब मैं बात करूंगी कानून की पढ़ाई की …..
हमारे देश में कानून की पढ़ाई बहुत ही खर्चीली और अंग्रेजी भाषा में है । कुछ विश्व विद्यालय और महाविद्यालय अब हिंदी भाषा में भी कानून की पढ़ाई करवाने लगे हैं पर उनके प्रति विद्यार्थी वर्ग का रूझान कम है क्योंकी हिंदी में ना तो अच्छे शिक्षक है और ना ही हिंदी भाषा में कानून की किताबें इस कारण अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी भाषा से कानून की शिक्षा करने पर बल दे रहे हैं ।
जो बच्चें अंग्रेजी भाषा में कानून की पढ़ाई कर रहे हैं जब वो वकालत या न्याय के मैदान में सेवा करने के लिए आयेगे तो उन्हें सिर्फ अंग्रेजी भाषा का ही ज्ञान होगा जो आमजन के लिए सबसे बड़ी समस्या बनेगा ।
सामान्य जनता हिंदी भाषी होगी और न्यायपालिका के लोग अंग्रेजी भाषा को जानने समझने वाले होंगे तो न्यायपालिका निष्पक्ष न्याय नहीं कर पायेगी क्योंकि उनके मध्य भाषा की दूरी होगी ।भाषा की दूरी की वजह से न्याय में अवरूद्ध पैदा होगा जो लोकतंत्र के प्रत्येक नागरिक के लिए चिंताजनक है ।इस लिए भाषाई दूरी को मिटाने के लिए कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को मिलकर इस तरफ ध्यान देना चाहिए और जितना जल्दी हो सके इसका सामाधान करना चाहिए ।


जय हिन्द जय भारत 


प्रियंका चौधरी परलीका

राजभाषा परिवार की तरफ से जारी ई बुक में आलेख 

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