अगस्त के महिने के
तीसरे गुरुवार की दोपहर
मूसलाधार बारिश में भीगता हुआ
वो मेरी दहलीज पर आया था ।
मुझसे विदा लेने ...
फिर आने का वादा करके।
इंतजार करना
मैं लौटकर आऊंगा
दिसम्बर के अंतिम सप्ताह।
मैं,वो,मेरी धड़कन और बारिश
गवाह है हमारी अंतिम मुलाकात की ...
उसके वादें की.....
सदी के सोलहवें वर्ष,
अगस्त के तीसरे गुरुवार की दोपहर ...
किया जो वादा उसने, मुझसे
दिसम्बर के अंत में लौट आने का,
तब से इंतजार जारी है मेरा,
दिसम्बर के अंतिम सप्ताह का।
आज फिर उसका वादा झूठा निकला ।
मैं खड़ी हूं,
घर की छत पर,
इक्कीसवीं सदी के बीसवें वर्ष की
अंतिम संध्या को...
डूबता सूरज देख रही हूं
दिसम्बर की अंतिम तारीख का
सूरज के साथ ही डूब रहा मेरा इंतजार
जो शुरू हुआ था
सदी के सोलहवें वर्ष की
अगस्त के तीसरे गुरुवार को
जो चलता रहा
सदी के बीसवें वर्ष के
दिसम्बर के अंतिम गुरुवार तक ।
प्रियंका चौधरी
Nice thought
ReplyDeleteवाह!��
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteइंतज़ार में क्या नहीं सोचा जा सकता .. अच्छी प्रस्तुति ... नए वर्ष में अब कुछ नया सोचें .
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी एहसास।