Monday, July 20, 2020

मजदूर - कविता

मजदूर का नहीं होता,
कोई धर्म
कोई जाति।
मजदूर समझता है,
कर्म को धर्म,
रोटी को जाति।
मजदूर करता है,
अपने लिए,
अपने परिवार के लिए 
दिन रात मेहनत।
उसे नहीं पड़ता फर्क,
उसके मालिक के धर्म से।
उसे करना है कर्म।
मजदूर को चाहिए,
सिर्फ काम।
मालिक राम हो चाहे रहीम

मालिक भी कब देखता है,
किसी मजदूर की जाति,
उसे तो वो मजदूर चाहिए,
जो दो रूपये कम लेता है।
मजदूर का नहीं होता कोई धर्म
 समझता है काम को अपना धर्म।

धर्म और जाति नहींं आई 
गरीब के हिस्से।
गरीब के हिस्से आई है सिर्फ मेहनत।
धर्म और जाति 
अमीरों के हिस्से आई है।
जब चाहे करवा सकते हैं।
जाति धर्म पर दंगे।
करवा कर दंगे 
छुप जाते हैं घरों में।
और‌ बेमौत मारे जाते हैं ,
मजदूर,
जिनके घर आये ही नहीं,
कभी जाति और धर्म।
आज आये तो मौत बनकर।

प्रियंका चौधरी परलीका
9/05/2020

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