Sunday, August 9, 2020

मजदूर

मजदूर

गांव से शहर आया था,
काम की तलाश में।
शहर ने मुझे काम दिया ,
मैंने शहर को नया रूप दिया ।

मैं बन गया 
एक कारीगर
देने लगा शहर को,
बेहतरीन इमारतें।

शहर ने काम दिया,
काम के बदले पैसे दिये,
 अपनापन नहीं दिया 

हम गांव के मजदूर ,
समझ बैठे, शहर को अपना घर।

देने लगे, शहर को अपना मान,
बेहतरीन इमारतें ।

जब हमें पड़ी शहर में ,
जरूरत आशियाने की।

सारी इमारतों के दरवाजे बंद थे,
हाथ में बैग, कंधे पर बच्चे।
सड़क पर लावारिस हम थे।
                       -  🖊️प्रियंका चौधरी परलीका

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