मजदूर
गांव से शहर आया था,
काम की तलाश में।
शहर ने मुझे काम दिया ,
मैंने शहर को नया रूप दिया ।
मैं बन गया
एक कारीगर
देने लगा शहर को,
बेहतरीन इमारतें।
शहर ने काम दिया,
काम के बदले पैसे दिये,
अपनापन नहीं दिया
हम गांव के मजदूर ,
समझ बैठे, शहर को अपना घर।
देने लगे, शहर को अपना मान,
बेहतरीन इमारतें ।
जब हमें पड़ी शहर में ,
जरूरत आशियाने की।
सारी इमारतों के दरवाजे बंद थे,
हाथ में बैग, कंधे पर बच्चे।
सड़क पर लावारिस हम थे।
- 🖊️प्रियंका चौधरी परलीका
😢😢
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