तुम लड़ना
अपने अस्तित्व के लिए
तुम प्रकृति को मानते हो
अपना अस्तित्व
तुम अशिक्षित हो इस लिए
तुम करते हो प्रकृति की पूजा
हम शिक्षित होकर
कर रहे हैं ,प्रकृति का दोहन
अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए ।
जब तक तुम्हारा अस्तित्व हैं
तब तक ये जंगल आबाद रहेंगे ।
एक दिन
शहरी भेड़िया
दौड़ते हुए ,
जंगल में
घुस जायेगा ।
कर देगें
तहस-नहस
अपने स्वार्थ के लिए
जंगल को ।
शहरी भेड़िया
देखकर जंगल की सम्पदा
जल,जमीन ,खनिज
हो जायेगा हिंसक ।
करने लगेगा ,
प्रकृति का बलात्कार
अपने स्वार्थ और एशो-आराम के लिए ।
शहरी भेड़िया
मचा देगा
तुम्हारे शांत जंगल में
आतंक ।
वो तहस नहस करेगा
तुम्हारा आशियाना
तुम्हारी नस्लें।
तुम उठा लेना
अपना हथियार
खुद को,
प्रकृति को
तुम्हारी नस्लों को बचाने के लिए ।
तुम लड़ना
प्रकृति ,अपने अस्तित्व के लिए ।
शहरी भेड़िया
हार कर भागेगा
शहर की तरफ
वो अहंकार में अंधा
स्वीकार कर नहीं पायेगा,
अस्तित्व और स्वार्थ में
अस्तित्व की जीत को ।
वो विचलित हो ,
तुम्हें जंगली ,असभ्य के साथ ,
कर देगा आतंकी घोषित ।
प्रियंका चौधरी परलीका
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